Saturday, May 18, 2024
विचार/लेख

चांद पर लहराया तिरंगा, पूरी जानकारी चांद तक सीमित नहीं भारत – देवानंद राय

आखिरकार भारत ने चांद पर तिरंगा लहराए दिया भारत का इसरो द्वारा लांच चंद्रयान-3 सफलतापूर्वक चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतर चुका है उतर गया यह अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की एक सबसे बड़ी जीत है जो आने वाले समय में अंतरिक्ष की दुनिया में मील का पत्थर साबित होगी साथ ही अंतरिक्ष पहुंचने तथा अंतरिक्ष में बसने की एक नई होड़ भी शुरू होगी।इसी के साथ भारत दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया है जिसे चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग की है पर इससे पहले भी भारत चांद के इसी दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग करने का प्रयास किया था परंतु उस समय भारत के दोनों यान क्रैश हो गए थे। चंद्रयान प्रथम तथा चंद्रयान द्वितीय दोनों ही चांद के दक्षिणी ध्रुव इलाके में ही क्रैश हुए थे तथा हाल ही में रूस द्वारा प्रक्षेपित लूना-25 भी चांद के दक्षिणी ध्रुव पर ही क्रैश हुआ था।परंतु यह चंद्र मिशन हजारों लोगों की मेहनत, मेधा और परिश्रम का परिणाम है जिसे चांद के सफर की सीढ़ी बनाने वाले सितारे भी हमारे ही समाज के बीच से निकले हुए लोग हैं कोई प्रयागराज से है तो कोई उन्नाव से तो कोई मुरादाबाद तो कोई सीतापुर से।

यही तो भारत की खूबसूरती है कि देश के अलग-अलग हिस्से से आए हुए, अलग-अलग राज्यों से आए हुए लोग एक साथ मिल बैठकर इस देश के लिए समर्पित भाव से कार्य करते हैं और उनका सीन फ्रख से तब चौड़ा हो जाता है जब वह तिरंगे को लहराते हुए देखते हैं आज चंद्रयान की सफलता के बाद न सिर्फ इन हजारों वैज्ञानिकों की मेहनत रंग लाई है बल्कि उन हजारों दुआओं का भी असर है जो कुछ दिनों से देश के अलग-अलग हिस्सों में हो रही थी कहीं हवन हो रहा था तो कहीं पूजा तो कहीं नमाज पढ़ी जा रही थी तो कहीं दुआ मांगी जा रही थी पूरा देश शाम को पूरा 140 करोड़ लोग एक साथ में टकटकी लगाए और दिल में चंद्रयान के सफल होने की उम्मीद, आशा और प्रार्थना करते हुए नजर आ रहे थे।हम सभी के मन में यह सवाल जरूर उठना होगा कि चंद्रमा का निर्माण कैसे हुआ तो वैज्ञानिकों के अनुसार धरती और थिया नमक ग्रह के टकराने से चंद्रमा बना था। पृथ्वी करीब 451 करोड़ वर्ष पुरानी है। वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी बनने के करीब छः से सत्रह करोड़ वर्ष बाद मंगल ग्रह के आकार जितना बड़ा थिया नामक ग्रह पृथ्वी से टकराया जिसके अवशेषों से ही जिस चंद्रमा को हम देख रहे हैं वह चंद्रमा बना।

पूरी दुनिया में कई तरह के चंद्र मिशन लॉन्च होते रहते हैं जिसमें से कुछ प्रमुख रूप से हैं जैसे कोई मिशन अगर ऑर्बिटर कहलाता है तो इसमें प्रोब या सैटेलाइट चांद के चारों ओर चक्कर लगाता है तो कोई मिशन यदि इंपैक्टर कहलाता है तो यह चांद की सतह पर जाकर टकराता है तो वहीं कोई मिशन यदि फ्लाई बाय कहलाता है तो इस मिशन का काम यह होता है कि यह चांद के आसपास से होकर गुजरता है और स्पेस में आगे जाने के लिए चांद के पास से जाना होता है तो वहीं कोई मिशन अगर लैंडर के नाम से जाना जाता है तो इसमें मुख्य बात चांद की सतह पर उतरना होता है तो वहीं अगर चंद्र मिशन रोवर कहलाता है तो यह एक प्रकार की मशीनरी होती है जो चांद के सतह पर घूमती है फोटो लेती है क्यूंड मिशन का अर्थ है इसमें इंसान एक अंतरिक्ष यान में बैठकर चांद पर जाता है वहां उतरता है वहां से चीजे का सैंपल इकट्ठा करता है और वापस धरती पर आ जाता है।

सिर्फ इस चंद्र मिशन तक ही नहीं
भारत सिर्फ इस चंद्र मिशन तक ही नहीं रूक रहा है हालांकि इस चंद्र मिशन की सफलता के साथ भारत गदगद है हमारे वैज्ञानिक प्रसन्न है उनका आत्मविश्वास बढ़ा हुआ है परंतु उन्हें अभी और आगे जाना है इसलिए इसरो इसी वर्ष के इसी महीने में सूर्य का अध्ययन करने के लिए आदित्य एल -1 का भी प्रक्षेपण करने वाला है यह देश का पहला अंतरिक्ष अभियान होगा जो सूरज का अध्ययन करेगा आदित्य एल-1 सूर्य और पृथ्वी के बीच एक खास बिंदु जिस लैंगरेंज पॉइंट वन कहा जाता है जिसे संक्षेप में जिसे एल-1 कहा जाता है वहां पर स्थापित होगा इस यान के द्वारा सूर्य की हर गतिविधि पर नजर रखी जा सकेगी। सूरज को समझने के लिए हमारे इसरो का यह ज्ञान 15 लाख किलोमीटर की दूरी तय करेगा।

चंद्रयान तीन के सफलता का इंतजार कर रहा
पूरी दुनिया चंद्रयान तीन के सफलता का इंतजार कर रहा था परंतु सभी के मन में यह सवाल भी है कि भारत अपना यह चंद्र मिशन क्यों भेज रहा है इससे भारत को क्या फायदा होगा सही और सटीक उत्तर ये है कि अगर भारत का यह चंद्रयान तीन वहां पर पानी और अन्य तत्व या खनिज पदार्थ की खोज करता है तो यह एक बहुत बड़ी खोज होगी और भविष्य में वहां से खनिज निकल भी जा सकते हैं जिसमें भारत की भूमिका सबसे बड़ी होगी।भारत ने 2008 में सबसे पहले चंद्रयान प्रथम को भेजा था जिसमें नासा का एक यंत्र भी लगा हुआ था जिसका नाम था मून मिनरलोलॉजी मैपर जिसके द्वारा चांद पर पानी को खोजा गया था तथा कई ऐसे जगह भी दिखे जहां पर बर्फ या पानी के भंडार होने की संभावना दिखाई

चंद्रयान प्रथम के साथ भारत दुनिया का तीसरा ऐसा देश बना जिसने चांद की सतह को छुआ, भले ही उस समय चंद्रयान प्रथम चांद की सतह पर ही क्रैश हुआ था।भारत का इसरो एक बार फिर नासा के साथ मिलकर दुनिया को आश्चर्यचकित करने वाला है क्योंकि भारत का इसरो और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के संयुक्त रूप से तैयार निसार उपग्रह जो पूरी बारह दिन में पूरी दुनिया को नापेगा यह भी लॉन्च होने वाला है इस उपग्रह के जरिए पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र की पूरी विस्तृत जानकारी मिल सकेगी इसमें विभिन्न समुद्री का स्तर भूजल, प्राकृतिक आपदा, भूकंप सुनामी ज्वालामुखी से जुड़ी जानकारियां और पृथ्वी में हर पल में हो रहे बदलाव की सही और सटीक जानकारी मिलेगी।सोचने वाली बात यह है कि इसरो ने चांद पर लैंडिंग के लिए दक्षिणी ध्रुव ही क्यों चुना ? आखिर दक्षिणी ध्रुव में क्या खास बात है ? तो इसके बारे में यह कहा जाता है कि अभी तक जितने भी चंद्र मिशन हुए हैं उनमें से अधिकांश चांद के इक्वेटर के पास ही उतरे हैं या क्रैश हुए हैं क्योंकि यह इलाका सामने से दिखता है यहां की सतह भी सपाट है सामने से दिखाने के कारण यहां का तापमान,मौसम और अन्य जानकारियां पता करने पर एकदम सही प्राप्त होती हैं

इस कारण यहां पर उतरना आसान है तो वहीं अगर हम दक्षिणी ध्रुव की बात करते हैं चांद के दक्षिणी ध्रुव की बात करते हैं तो चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती कहा जाता है कि कई अरबो सालों से यह इलाका अंधेरे में डूबा हुआ है इसलिए इन्हें स्थाई छाया वाला क्षेत्र भी कहते हैं चांद के इन ध्रुवीय क्षेत्रों में बने गड्ढे अरबों सालों से सूरज की रोशनी के बिना बहुत ठंडी अवस्था में है। इसका मतलब यह है कि यहां की मिट्टी में जमा चीज और वह सालों से वैसी ही है उनमें कोई बदलाव नहीं आया यहां पर पानी और अन्य तरह के तत्व और खनिज मिलने के बहुत ज्यादा अवसर है।चार चरणों में उतारने वाला चंद्रयान तृतीय चंद्रमा के उस दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा जहां पर तापमान -200 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है।

चांद के दक्षिणी ध्रुव पर जहां पर चंद्रयान तीन उतरा है वहां पर सामान्य तापमान- 50 से 10 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है जो रोवर और लैंडर के इलेक्ट्रॉनिक्स के काम करने के लिए अनुकूल स्थिति भी है। भारत के द्वारा ही लॉन्च 2008 में चंद्रयान प्रथम मिशन ने चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी का संकेत दिया था।सवाल यह है कि चांद पर मिले बर्फ या पानी का प्रयोग क्या हो सकता है ? तो चांद पर मिले बर्फ को भविष्य का ईंधन भी कहा जा रहा है अगर चंद्रमा पर बर्फ का पर्याप्त भंडार का स्पष्ट जानकारी मिल जाती है तो चंद्रमा पर रुकने वाले मिशन की अवधि लंबी हो जाएगी क्योंकि इससे ईंधन, पानी और हवा पृथ्वी से लेकर जाने की आवश्यकता ही नहीं होगी। क्योंकि चंद्रमा पर मौजूद बर्फ को पीने के पानी ऑक्सीजन और रॉकेट के लिए हाइड्रोजन ईंधन में बदला जा सकता है।चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास मिट्टी में जमीन बर्फ के पड़ताल से कई रहस्यों का पता चल सकता है।

चंद्रयान के लेंडर और रोवर्स उतरकर वहां की मिट्टी की जांच करने की कोशिश करेंगे जिससे यह पता चल सकता है कि सोलर सिस्टम और ब्रह्मांड कैसे बना होगा ? पृथ्वी और चंद्रमा का जन्म का रहस्य क्या है ? चंद्रमा का निर्माण कैसे हुआ होगा ? उसके निर्माण के समय सौरमंडल में या ब्रह्मांड में किस प्रकार की स्थितियां रही होगी यह जाना जा सकता है और सबसे बड़ी बात यह सारी जानकारियां भारत के पास होंगे जिससे भारत आने वाले समय में अंतरिक्ष के रेस में काफी आगे हो जाएगा।

भारत अब पूरी दुनिया के सामने अपनी काबिलियत और क्षमता को साबित कर चुका है इस बार के कैलेंडर में एक्स्ट्रा सेंसर भी डाले गए हैं तथा उनकी एल्गोरिथम को भी और अधिक विकसित किया गया है जिससे यह चंद्रयान द्वितीय से अलग हो चुका है इस बार उसकी जो भी कमियां हैं उन्हें सही की जा चुकी है पहले अपोलो मिशन 1969 से 1972 के बीच चांद पर गए थे और चांद से ले गए मिट्टी को लूनर सॉवइल के नाम से जाना जाता है तब से उसे पर रिसर्च हो रही है लूनर सॉवइल में भी पेड़ उग सकता है बशर्ते उसमें न्यूट्रिएंट्स, पानी इत्यादि देना होता है जो कि पौधों के लिए आवश्यक भी होता है‌।

चंद्रयान-2 से भी कम खर्चे में चांद तक पहुंचा चंद्रयान-3 चंद्रयान-3 का कुल बजट 615 करोड़ था तो वहीं चंद्रयान-2 का कुल बजट 978 करोड़ कम खर्च के मामले में इसरो पूरी दुनिया में एक रोल मॉडल बन चुका है। अगर मिशन चंद्रयान का कुल लेखा-जोखा देखे तो चंद्रयान प्रथम को लॉन्च करने में 386 करोड रुपए खर्च हुए थे जो कि वर्ष 2008 में लॉन्च हुआ था। तो वहीं 22 जुलाई 2019 को लांच हुए चंद्रयान दो की कुल लागत 978 करोड़ थी। अगर इसरो के इन खर्चों को दुनिया के अन्य चंद्र मिशन से तुलना करें तो तो भी इसरो काफी किफायती है जहां चंद्रयान-3 की कुल लागत 615 करोड़ है तो वही हाल ही में रूस के द्वारा भेजे गए लूना-25 की कुल लागत 1659 करोड रुपए लूना-25 पिछले सैंतालीस वर्षों में चंद्रमा पर रूस का पहला मिशन था। तो वही 2019 में चांद पर चीन का उतरा विमान चांग ई-4 की भी कुल लागत चंद्रयान-3 से कई गुनी अधिक थी जो 1365 करोड रुपए थी।

इतने कम खर्चे में भारत ने पूरी दुनिया को अपनी काबिलियत अपनी क्षमता अपनी प्रतिभा दिखला दी है कि वह आने वाले समय में स्पेस रेस में सबसे आगे होगा आज के मिशन की सफलता यह बतलाती है कि हमारे वैज्ञानिकों के प्रतिभा उनके परिश्रम और लग्न में कोई कमी नहीं है हम हर बार कुछ न कुछ नया सीखने हैं और कुछ ना कुछ नया पूरी दुनिया को देते हैं क्योंकि हम सिर्फ अपने कल्याण की बात नहीं करते हैं भारत हजारों सालों से वसुधैव कुटुंबकम की परंपरा को लेकर आगे बढ़ा है भारत का यह चंद्र मिशन भी मानव जाति के कल्याण को ही समर्पित है।