Tuesday, October 15, 2024
साहित्य जगत

छल

हमने कुछ लोग लगा रखे हैं

जो बिन मेहनताना ,
पीठ पीछे बात बड़ी ही ईमानदारी से करते हैं ।
तुम्हें राम से रावण,सीता से सूपनखा बना देते हैं ।
अफसोस समय बड़ा बलवान है वो ये भूल जाते हैं!
कितना सच है बिना सी टीवी के,
सबको लाइव टेलीकास्ट करते हैं ।
मनगढ़ंत बातें गढ़ कर ,
अपने कुत्सित मन को ,
प्रसन्न करते हैं।
इसके लिए सबसे प्यारा ,सबसे भोला और सबसे करीबी बनकर ,
पल पल छलते हैं।
किसी के विश्वास को,
तार तार करते हैं ।
ना जाने हम हर बार मात
सच्चे और अच्छे बनकर भी क्यों खा जाते हैं ?
सुनने वाले बस सुनकर मज़ा लेते हैं ,
दिमाग लगाए तो सच खुद-ब-खुद नजर आएगा।
चलो हम ऐसे ही अच्छे ।
चापलूसी हमें आती नहीं,
लोगों का मान मर्दन हमें भाता नहीं ,
किसी के विश्वास का खून करना सीखा नहीं।
खुद की कही बातों को ,
नाम दुसरे का लेकर ,
महफ़िल में लोमड़ी जैसी नियत लिए,
दूसरों के कंधों पर बंदूक रखकर चलाते है।
ग्रेशम का नियम कतिपय सत्य ही है,
बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है।
ऐसे ही बद नियत वाले लोग मेकअप लगाकर अपने बदसूरत इरादों से अच्छे लोगों को बड़ी तसल्ली से बदनाम कर जाते हैं
और हम उनको सुनकर मजा ले कर ,
उनको और बढ़ावा देते है?
क्यों हम कह नहीं पाते चुप रहो बकवास मत करो?
बेशक छल में क्षणभंगुर बल है
मगर आज भी यकीनन अरदास में ही हल है।
हम जैसे हैं ऐसे ही अच्छे ।
मन की आंखों से देखोगे ,
तो सारे जाले छट जाएंगे ।
मकड़िया तुमको नजर आएंगी,
है तुम्हारे ही आसपास ,
छाई रहती हैं सदा करके बकवास।
बातों को सुनो फिर उनको गुनो,
तुम्हें खुद ही उत्तर मिल जाएगा ।
सामने वाला कितना फरेबी है, जिसके साथ बैठता उठता उसी के लिए बातें बनाता है।
ईश्वर का धन्यवाद जो उसने कर्म की चक्की बनाई ,
वरना ऐसे लोग जान न पाते छले जाने का दुःख होता है क्या !
अब तुम्हारी बारी है आई, तुमको भी ऐसे ही कोई तुम्हारा अपना बनकर तसल्ली से धीरे-धीरे छलेगा। तुम्हारे अस्तित्व को चूर-चूर करेगा ।
फिर याद करना जो तुमने किया था किसी के साथ!
खुदा निगेहबान हो तुम्हारा।

स्वरचित
शब्द मेरे मीत
डाक्टर महिमा सिंह