Tuesday, July 2, 2024
साहित्य जगत

फागुन

अबकी फागुन आया है जरा हट के
अबकी होली मैं खेलूंगी जरा डट के।
मोरे सजना रंगीले जो आये पलट के,
मोरे अलबेले पिया जो आये पलट के अबके होरी मैं खेलूंगी डट के।

उनके पीछे मैं चुपके से जाके ,
उनके पीछे उनके पीछे मैं चुपके से जाके ये गुलाल अपने तन पे लगा के
ये गुलाल अपने तन पे लगा के,
रंग दूंगी उन्हें भी लिपट के ।
मोरा बांका सजनवा जो आये पलट के,
मोरा बांका सजनवा जो आये पलट के अबके होरी मैं खेलूंगी डट के।

नहीं चलेंगी कोई उनकी आनाकानी,
होली में अबकी करूंगी मैं
मनमानी ।
चाहे भीगे चुनरिया गुलाबी
छोड़ुगी नाही कोरी अचकनिया तिहारी ।
बरसे गुलाल रंग हजारी मोरे अंगना
तरसे तन मन भीजन को इस रंगवा
ऐसे रंगे की एक दूजे को जन्म जन्म पिया छूटे ना नेह की डगरिया।
बांधी प्रीत की गांठ सतरंगी
बनी रे जोगनियां।

अबकी होली जो आये मोरे सजनवा
की जो उन्होंने अगर जोरा जोरी ,
की जो उनहोंने की जो उन्होंने अगर जोरा जोरि हो हो
छीनी पिचकारी बैंयां मरोरि छीनी पिचकारी
जोगीरा सा रा ररररर
छोड़ूंगी नहीं रंग डालूंगी झपट के
ले लूंगी उतार बलैया रंगीले बैरी सजनवा की
रंग छीट के कर दूगी जीयरा उनका बावरा फिर आएंगे दौड़े चले साजना अंगना में
अबकी होली मैं खेलूंगी डट के ।

स्वरचित
शब्द मेरे मीत
डाक्टर महिमा सिंह