Saturday, May 18, 2024
साहित्य जगत

नशेड़ी परिवार में अनाथ होते बच्चे

जब नाथ ही लिप्त हो मधुशाला में ,

कौन रखें ख्याल गृहशाला का ।
जो कुछ आता आमदनी में चढ़ जाता भेंट मधुशाला में।
घर में होती कलह आए दिन
सुख खुशियां रुठे भूले
रस्ता घर के दरवाजे का।
बचपन उड़ा नौनिहालों का
नशे के धुए में ।
पाठशालाकी राह हुई बंद ,
बचा ना एक पैसा आंटी में।
एक-एक पल एक-एक दिन
जीना हुआ मुहाल ।
कौन छुड़ाए !कौन समझाए? नशा है बर्बादी की जड़।
हुए अनगिनत घर बर्बाद।
हुए अनगिनत बच्चे अनाथ ।
लेकिन राह मधुशाला की ,
घर के नाथ छोड़ ना पाए।
पीछे जब देख पछताए ,
तब होवे क्या जब सब कुछ लुटा कर, सब बर्बाद करके ,
जब गृहस्वामी सब कुछ पी जाए है हाला में घोलकर।
कुछ तो राह निकाले ,
कुछ तो आओ सोचे ।
ना हो कोई लिप्त नशे में,
आओ उनको बांधे रिश्तो के प्यार में
देश की मिट्टी की खुशबू के नशे की लत उन्हें लगाए,
करें तो करें नशा सिर्फ राष्ट्रप्रेम का।

स्वरचित
शब्द मेरे मीत
डाक्टर महिमा सिंह
लखनऊ उत्तर प्रदेश