Saturday, January 25, 2025
साहित्य जगत

उकेर रही हूं…..

उकेर रही हूं
तेरी-मेरी यादों के
कुछ लम्हें…..
कुछ स्मृतियां
कुछ अहसासों को
वो पल जो सिर्फ़ हमारे थे,
जिन्हें संजोए हैं
सम्भाले हैं हमने
वक्त से चुराकर
सबसे छिपाकर
आज भी गहराया है
मेरे मन के भीतर
मिट्टी की सोंधी खुशबू के साथ
तुम्हारे वो अहसास
उकेर रही हूं…..
मिट्टी के मटकों पर….
प्रीत के चटख रंगों से
भर रही हूं रंग….
जो पल बदरंग रह गए थे
उन्हें रंगीन बनाकर
जीवन को सजाना जो है।
उकेर रही हूं
दरकते हुए वक्त
अहसासों की नमी से
आर्यावर्ती सरोज “आर्या
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)