कैसे भूल गए?
कैसे भूल गए हम उनको,
बलि दे दी थी जवानी की।
खुली हवा में श्वास ले रहे,
ये उनकी मेहरबानी थी।।
उनकी अद्भुत क्षमताएं थीं,
विलग – विलक्षण प्रतिभाएं थी।
मात- पिता परिवार त्याग ,
उन सबने शस्त्र उठाए थे।।
चाह यदि उनकी होती तो,
वे भी भोगी बन सकते थे।
मां भारती को छोड़ बिलखते,
सुख के रोगी बन सकते थे।।
किन्तु उन्होंने त्याग वैभव को,
यातनाओं को भोग लिया।
भारत मां के थे सपूत वे,
देश की खातिर जोग लिया।।
आर्यावर्ती सरोज “आर्या”
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)