Sunday, April 21, 2024
विचार/लेख

मानसिक रोगों की चपेट में मनुष्यता मनुष्य का पूरा इतिहास

गम्भीर मानसिक रोगों की चपेट में मनुष्यता
मनुष्य का पूरा इतिहास उसकी बीमारियों का इतिहास है। और मनुष्य की पूरी सभ्यता उसकी बीमारियों को छिपाने का प्रयास है। मनुष्य किसी भांति जी लेता है लेकिन जीने का नाम जिंदगी नहीं है। और हम किसी भांति जन्म से लेकर मृत्यु की यात्रा कर लेते हैं इसलिए अपने को जीवित समझ लेना काफी नहीं है।
मैंने सुना है, एक आदमी मरा और तभी उसे पता चला कि वह जीवित था। बहुत लोगों को मरने के क्षण में ही पता चलता है कि जीवन हाथ से निकल गया है। जीवन का सीधा कोई अनुभव ही नहीं होता। जैसा मनुष्य है रुग्ण, अस्वस्थ, तनाव से भरा हुआ। उसमें जीवन का अनुभव हो भी नहीं सकता है। लुइस…ने एक किताब लिखी है नाम उसका बहुत प्यारा है नाम है बी ग्लैड दैट यू आर न्यूरोटिक। प्रसन्न हों कि आप मानसिक रूप से बीमार हैं। मजाक उसकी गहरी है। कहना वह यह चाह रहा है कि इसलिए प्रसन्न हों क्योंकि मानसिक रूप से बीमार होना बहुमत में होना है, मैजारिटी में होना है। अधिक लोग मानसिक रूप से बीमार हैं। और…का खयाल है कि जैसे-जैसे आदमी आगे बढ़ रहा है, मानसिक बीमारी बढ़ रही है। और बहुत जल्द वह वक्त आ जाएगा जब मानसिक रूप से जो बीमार नहीं होगा उसकी गिनती नार्मल में नहीं हो सकेगी।
इसलिए वे लोग जो मानसिक रूप से बीमार हैं, उन्हें प्रसन्न होना चाहिए। क्योंकि मनुष्य की भविष्यता के वे साथ हैं। मनुष्य का भविष्य पागलों और बीमारों का ही भविष्य है। शायद बहुत जल्दी वह वक्त आ जाए कि हमें पागल लोगों के लिए पागलखाने न बनाने पड़ें बल्कि जो लोग पागल होने से बच जाएं उनकी रक्षा के लिए हम इंतजाम करना पड़े और अलग उनके ठहरने की व्यवस्था करनी पड़े। जिसे हम सामान्य रूप से स्वस्थ आदमी कहते हैं उसका केवल इतना ही मतलब होता है कि जितने सब लोग बीमार हैं मानसिक रूप से वह उतना ही बीमार है, उनसे ज्यादा नहीं। मानसिक रूप से विक्षिप्त और साधारण रूप से स्वस्थ आदमी में जो अंतर है, वह अंतर गुण का नहीं केवल मात्रा का है। वह केवल डिग्रीज का ही अंतर है। जैसे निन्यानबे डिग्री पर पानी गरम होता है, लेकिन भाप नहीं बनता। सौ डिग्री पर भाप हो जाता है। लेकिन सौ डिग्री गरम पानी में और निन्यानबे डिग्री गरम पानी में कोई गुण का भेद नहीं है। कोई क्वालिटेटिव फर्क नहीं है। जो फर्क है वह केवल डिग्रीज का है। एक डिग्री और, और पानी भाप बन जाएगा।
जिन्हें हम साधारण रूप से स्वस्थ लोग कहते हैं, उनमें और मानसिक रूप से बीमार आदमी में जो फर्क है वह डिग्री का ही है। एक डिग्री और, और कोई भी आदमी पागल हो सकता है।
WHO के अनुसार, 450 मिलियन लोग वैश्विक स्तर पर मानसिक विकार से पीड़ित हैं। विश्व में चार व्यक्तियों में से एक व्यक्ति जीवन के किसी मोड़ पर मानसिक विकार या तंत्रिका संबंधी विकारों से प्रभावित है। मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित 10-19 वर्ष की उम्र के व्यक्तियों की वैश्विक रोगभार में 16% की हिस्सेदारी है।
कुछ समय पूर्व बॉलीवुड के लोकप्रिय एक्टर सुशांत सिंह राजपूत ने मुंबई स्थित अपने घर में आत्महत्या कर ली थी। आत्महत्या के कारण तो स्पष्ट नहीं थे परंतु उन परिस्थितियों की खोज की जा रही है जिन्होंने सुशांत सिंह को मानसिक तौर पर विवश कर आत्महत्या करने को मजबूर किया। यह समय कोरोना एपीडेमिक का भी था जब दुनिया के कई लोग अवसादग्रस्त हो रहे थे। ऐसे में मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा करना लाज़िमी हो जाता है जिसके वशीभूत होकर इंसान आत्महत्या करने की सोचने लगता है।
द लांसेट में प्रकाशित एक अन्य शोध से पता चलता है कि कम उम्र में शराब का उपयोग शराब निर्भरता विकारों की संभावना को बढ़ाता है। प्रत्येक राज्य में 4000 घरों को लक्षित करते हुए एक देशव्यापी सर्वेक्षण किया गया। सर्वेक्षण में पाया गया कि लगभग 2.8% आबादी भांग के विभिन्न रूपों का, 1.14% हेरोइन का, 0.52% अफीम का, 0.96% कृत्रिम नशीले पदार्थ (सिंथेटिक ओपिओइड) का, और 1.08% शामक का दुरुपयोग करती है। किशोरों की आबादी ( 1.17 %), वयस्कों की तुलना (0.58%) में कश खींचनेवाले द्रव्यों का अधिक प्रयोग करती है। अन्य दवाओं, जैसे कोकीन (0.1%), एम्फ़ैटामीन (0.18%), और मतिभ्रामकों (हैलूसिनोजैन) (0.12%) का दुरुपयोग भारत में अति अल्प है। रिपोर्ट में इंजेक्शन के द्वारा सेवन किये जाने वाली नशीली दवाओं की एक अलग श्रेणी भी सूचीबद्ध की गई। आबादी का यह अंश न केवल नशीली दवाओं के प्रतिकूल प्रभावों से ग्रस्त है, बल्कि त्रुटिपूर्ण विधि से इंजेक्शन लगाने से उत्पन्न होने वाली अन्य बीमारियों के जोखिम से भी पीड़ित है।
जहाँ तक भारत का प्रश्न है तो राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, भारत की 18 वर्ष से अधिक 10.6 प्रतिशत आबादी यानी करीब 15 करोड़ लोग किसी न किसी मानसिक रोग से पीडि़त हैं। हर छठे भारतीय को मानसिक स्वास्थ्य के लिए मदद की दरकार है।
जनगणना 2011 के अनुसार, भारत में लगभग 22 लाख 28 हजार मनोरोगी हैं जबकि लांसेट की रिपोर्ट कहती है कि भारत में मनोरोगियों की संख्या 16 करोड़ 92 लाख है।
वहीं डब्ल्यूएचओ के अनुसार, भारत की 135 करोड़ की आबादी में 7.5 प्रतिशत (10 करोड़ से अधिक) मानसिक रोगों से प्रभावित हैं। अध्ययन बताते हैं कि 2020 तक भारत की 20 प्रतिशत आबादी किसी न किसी मानसिक रोग से ग्रस्त होगी। 15.29 आयु वर्ग में आत्माहत्या की दर भी सर्वाधिक होगी। स्मरणीय हो कि लगभग एक मिलियन लोग हर साल आत्माहत्या करते हैं। इस तरह की बीमारियों की बढ़ती संख्या में अवसाद को तीसरा स्थान दिया गया है जिसके 2030 तक पहले स्थान पर पहुँचने की उम्मीद है।
जहाँ तक मनोचिकित्सकों का सवाल है तो भारत में एक लाख की आबादी पर 0.3 मनोचिकित्सक, 0.07 मनोवैज्ञानिक और 0.07 सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वहीं विकसित देशों में एक लाख की आबादी पर 6.6 मनोचिकित्सक हैं। मेंटल हॉस्पिटल की बात करें तो विकसित देशों में एक लाख की आबादी में औसतन 0.04 हॉस्पिटल हैं जबकि भारत में यह 0.004 ही हैं।
डब्ल्यूएचओ मानसिक स्वास्थ्य को मज़बूत करने और उसे बढ़ावा देने की दिशा में विभिन्न देशों की सरकारों को समर्थन और सहयोग प्रदान करता है। डब्ल्यूएचओ द्वारा मानसिक स्वास्थ्य संवर्द्धन की दिशा में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी कई साक्ष्यों का मूल्यांकन किया गया है। WHO इस जानकारी को सरकारों को प्रसारित करने एवं नीतियों और योजनाओं के संबंध में प्रभावी रणनीतियों के एकीकरण की दिशा में कार्य कर रहा है। 2013 में वर्ल्ड हेल्थ असेंबली ने ‘‘2013-2020 के लिये व्यापक मानसिक स्वास्थ्य कार्ययोजना’’ को मंज़ूरी दी थी। इस योजना द्वारा WHO के सभी सदस्य देशों ने मानसिक स्वास्थ्य में सुधार लाने और वैश्विक लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु प्रतिबद्धता दर्शाई गई है।
इस कार्ययोजना का संपूर्ण लक्ष्य मानसिक कल्याण को बढ़ावा देना, मानसिक विकारों को रोकना, देखभाल प्रदान करना, रिकवरी में वृद्धि करना, मानव अधिकारों को बढ़ावा देना और मानसिक विकार वाले व्यक्तियों के संबंध में मृत्यु दर, रुग्णता और विकलांगता में कमी लाना है।
– अनुराग पाठक
लखनऊ(उत्तर प्रदेश)
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