Wednesday, April 24, 2024
साहित्य जगत

अपने जन्मदिवस पर दो रचनाएं-वीके वर्मा

मेरे जीवन के उद्देश्य (अपने विषय में)

◆*मैं क्या हूँँ*◆

दीन दुखी के उर के भीतर, वर्मा करता सदा बसेरा।
और मरीजो की सेवा में सदा समर्पित जीवन मेरा।।

जनमानस की व्यथा देखकर मेरी आँखे भर आती है।
जड़ता दूर भगाने में ही मेरी संज्ञा सुख पाती है।।

मेरा जीवन अलग-थलग है सदा व्यथित का हाथ गहा हूँ।
मैं समाज के हर प्राणी के प्रति संवेदनशील रहा हूँ।।

’’डा0 वर्मा’’ भावुकता की धारा में ही, सदा बहा है।
सिर्फ कर्म की पूजा करना, जीवन का उद्देश्य रहा है।।

जीवन का अभिप्राय यही है, मैं समाज के आऊँ काम।
करूँ तपस्या, कर्मठता से खानदान का ऊँचा नाम।।

मानवीयता का पोषक हूँ, करता यही हमेशा आस।
जो आये खुशहाली दे दूँ, मेरा रहता यही प्रयास।।

 

●*सृजन*●

रूप को अवलोकते ही,
जन्म लेती कामनाएँ।
मिलन की नवआस लेकर,
नृत्य करती भावनाएँ।

चाह के स्पर्श से ही,
सृजन का अवतरण होता।
जिन्दगी के काव्य में तब,
प्रेम का व्याकरण होता।

जिन्दगी मदमस्त होकर,
एक नूतन घर बनाती।
भावना के देहरी पर,
आस का दीपक जलाती।

चेतना पीयूष-जल से,
मृदुल आनन है भिगोती।
जिन्दगी की सार्थकता,
सृजन से ही सिद्ध होती।

डा0 वी0 के0 वर्मा
आयुष चिकित्साधिकारी, जिला चिकित्सालय-बस्ती।