Tuesday, April 16, 2024
साहित्य जगत

समर्पण की बेला का पावन उत्सव करवा चौथ

सारे सुखो को जोड़कर,

प्रीत की गीली मिट्टी से
गूंध कर करवा बनाती हूं और उसमें जीवन के अनगिनत पलों को बुनकर
हर बार करवा को न ए आकार देती हूं।
इस मन के करवा को न ए कलेवर से सजाने का नया संकल्प लेती हूं की चाहे कितने भी उतार-चढ़ाव आए जिंदगी में हर बार चांदी सा अपनी प्रीत से चमका दूंगी।
सारी कड़वाहट को जल की धार में बहा देती हूं हर बार ।
सारी अलाये- बलाये लेती हूं उतार ,
और आरती के सजे थाल सा अपना जीवन भी शुभता से भर जाए और संग साथ हमारा प्रीत के रंगों से रंग जाए ,
और चंदा की उज्जवल चांदनी से नहाए ,
और पावन बन जाए एक दूजे का साथ,
का यह बंधन दिन दूना महके।
जीवन की बगिया को चहका जाए।
करती हूं बस यही कामना बारंबार।
यह समर्पण की पावन उत्सव की बेला लगा जाए जीवन में खुशियों का सतरंगी मेला।
तेरे मेरे अनोखे संबंध की यह रात लाती है नयी खुशियों की भोर सुहानी।
त्यौहार है निशानी अनगिनत अविरल खुशियों की सरिता का आओ इसे मिलकर और खास बनाएं हर बार नए रंगों से सजाएं ।
जीवन को प्रीत के नए अर्थ दे जाए।
ऐसी ही प्रीत का करवा चौथ हर बार मनाए।

स्वरचित
शब्द मेरे मीत
डाक्टर महिमा सिंह
लखनऊ उत्तर प्रदेश