Wednesday, May 15, 2024
हेल्थ

भ्रांतियां दूर कर पुरूषों को भी नसबंदी के लिए राजी कर रही हैं आशा अंगूरा देवी

बस्ती। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भानपुर अंतर्गत आने वाले बांकेचोर गांव की आशा कार्यकर्ता अंगूरा देवी ने अब तक 28 पुरूष नसबंदी कराकर जिले में रिकॉर्ड बनाया है। 37 महिलाओं की भी नसबंदी अब तक वह करा चुकी हैं। डीपीएम राकेश पांडेय का कहना है कि आशा के समझाने के तरीके को अन्य आशा तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है, जिससे पुरूष नसबंदी को और बढ़ावा मिल सके। अंगूरा पुरुषों के मन का भ्रम दूर कर नसबंदी के लिए उन्हें राजी कर लेती हैं।
अंगूरा देवी का कहना है कि पुरूष प्रधान देश में यह मान लिया गया था कि परिवार नियोजन की जिम्मेदारी सिर्फ महिलाओं की है। पुरूष नसबंदी की कोई बात नहीं करना चाहता। इसी जड़ता को तोड़ने की जरूरत है। उन्होंने इस जड़ता को तोड़ने तथा लड़का लड़की में भेदभाव न करते हुए सर्वप्रथम अपने पति रामविलास की नसबंदी कराकर नजीर पेश की।

दो बच्चों वाले परिवार के पुरूष की करती हैं काउंसिलिंग
उन्होंने बताया कि जिस परिवार में दो बच्चे हो जाते हैं, वह उस परिवार के पुरूष से पहले बात करती हैं। उससे पहला सवाल करती है कि क्या वह पत्नी को चाहता है। जवाब हां में मिलने के बाद सबसे पहले उन्हें बताती हैं कि पत्नी के स्वास्थ्य व सुखी जीवन के लिए परिवार नियोजन जरूरी है। दो बच्चों के बाद स्थायी परिवार नियोजन अपनाना बेहतर होता है।
परिवार में दो बच्चों के खान-पान पर जहां ज्यादा ध्यान दे सकते हैं, वहीं इनकी शिक्षा भी अच्छी हो सकती है। स्वस्थ बच्चे बीमार कम पड़ते हैं, जिससे उन पर दवा आदि का खर्च कम आता है। किसानी वालों को समझाते है कि बड़े परिवार में बंटवारे के बाद खेती की जमीन का भी संकट हो जाता है।
इसके बाद उन्हें बताती हैं कि महिला की अपेक्षा पुरूष नसबंदी काफी सुरक्षित व सरल है। शारीरिक रूप से इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है। उनके पति ने भी नसबंदी कराई है। उनकी इन बातों का असर ज्यादातर पुरूषों पर पड़ रहा है, जिससे वह नसबंदी के लिए राजी हो जा रहे हैं। हर धर्म व वर्ग के लोग नसबंदी को अपना रहे हैं।

आशा के समझाने पर कराई नसबंदी
बांकेचोर निवासी रामसूरत ने बताया कि उनके दो बच्चे हैं। छोटा बच्चा दो साल का है। वह मजदूरी करते हैं। आशा अंगूरा देवी के समझाने के बाद उन्हें छोटे परिवार का महत्व समझ में आया। झिझक इस बात को लेकर थी कि नसबंदी के बाद शरीर कमजोर हो जाएगा। मजदूरी नहीं कर पाएंगे तो परिवार का खर्च कैसे चलेगा। आशा ने समझाया कि यह सब भ्रम है। उन्होंने अपने पति की स्वंय नसबंदी कराई है, उन्हें किसी तरह की समस्या नहीं हुई। ऑपरेशन में मामूली चीरा लगाया जाता है। कुछ आराम करने के बाद वह सामान्य जीवन गुजार सकता है। रामसूरत ने बताया कि ऑपरेशन कराने के बाद वह पहले की तरह जीवन गुजार रहे हैं। पत्नी व परिवार के अन्य लोग भी काफी खुश हैं।

परिवार नियोजन का स्थायी साधन है नसबंदी
एसीएमओ आरसीएच डॉ. जय सिंह का कहना है कि पुरूष नसबंदी के बारे में लोगों को दिमाग से यह बात निकाल देनी चाहिए कि पुरूष नसबंदी से शारीरिक कमजोरी आती है। पुरूष नसबंदी महिला नसबंदी की अपेक्षा ज्यादा आसान और सुरक्षित है। दो बच्चों में अंतर रखने के लिए पुरूष कंडोम का इस्तेमाल कर सकते हैं, जबकि परिवार में दो बच्चे होने के बाद स्थायी साधन के रूप में नसबंदी करा सकते हैं।

99.5 प्रतिशत सफल होती है पुरूष नसबंदी
एसीएमओ आरसीएच का कहना है कि पुरूष नसबंदी 99 प्रतिशत से ज्यादा सफल होती है। कुछ ही मिनट में व आसान ऑपरेशन के जरिए नसबंदी की प्रक्रिया पूरी की जाती है। पुरुष नसबंदी के बाद कम से कम तीन महीने तक अस्थायी परिवार नियोजन के साधन का उपयोग करना जरूरी है। इसके बाद वीर्य की जांच करा लें। प्रजनन तंत्र से शुक्राणु समाप्त होने के बाद नसबंदी कामयाब मानी जाती है। नसबंदी कराने से पहले चिकित्सक से सलाह जरूर लें।

प्रेरक को मिलती है प्रोत्साहन राशि
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के जिला कार्यक्रम प्रबंधक बताते हैं कि जनपद मिशन परिवार विकास में शामिल है। पुरुष नसबंदी के लाभार्थी के खाते में तीन हजार रुपए भेजे जाते हैं। नसबंदी के लिए प्रेरित करने वाले को भी प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान है। गैर सरकारी व्यक्ति के अलावा अगर आशा, एएनएम और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता भी पुरुष नसबंदी के लिए प्रेरित करती हैं तो एक केस पर उन्हें 400 रुपए का भुगतान किया जाता है।

पुरूष नसबंदी के लिए आवश्यक शर्ते
– लाभार्थी की उम्र 22 वर्ष से 60 वर्ष हो।
– परिवार में कम से कम एक बच्चा हो।
– बच्चे की उम्र एक साल से अधिक हो।
– पति-पत्नी में से किसी एक की नसबंदी होगी।

परिवार नियोजन में बढ़ रही दिलचस्पी
वर्ष पुरूष नसबंदी कंडोम
2017-18 14 5. 46 लाख
2018-19 16 3.10 लाख
2019-20 21 5. 46 लाख
2020-21 12 4. 49 लाख
2021-22 17 4. 46 लाख

नसबंदी विफल होने पर मिलती है धनराशि
डीपीएम का कहना है कि नसबंदी विफल होने की दशा में लाभार्थी को 60,000 रुपए का भुगतान नियमानुसार किया जाता है। नसबंदी कराने के सात दिनों के अंदर अगर मृत्यु हो जाती है तो चार लाख रुपए दिए जाने का प्रावधान है। इसी प्रकार आठ से 30 दिन के अंदर मृत्यु होने की दशा पर एक लाख रुपए की धनराशि दिए जाने का प्रावधान है। 60 दिनों के अंदर अगर किसी तरह की जटिलता होती है तो इलाज के लिए 50 हजार रुपए तक की धनराशि दी जाती है।