Sunday, January 26, 2025
साहित्य जगत

गज़ल

जबसे तेरा आना जाना बंद हुआ ।
मेरी गलियों का इतराना बंद हुआ ।।

तूने जबसे चिहरे पर डाला परदा ।
मेरा तो दिलकश मयख़ाना बंद हुआ ।।

उससे मिलने को आई इक बार नहीं ।
थाने में   जबसे   दीवाना बंद हुआ ।।

गुलशन में जबसे तुम आये वापस हो।
फूलों का  झरना-मुरझाना   बंद हुआ ।।

खुशियाँ भी उस दिन से हुई हैं “ग़ैर “ख़फा ।
जिस दिन से वो पाई-आना बंद हुआ ।।

   अनुराग मिश्र ” ग़ैर “