Wednesday, February 12, 2025
साहित्य जगत

*ग़म और खुशी*

एक दिन ग़म ने
ख़ुशी से पूछा-
ख़ुशी तुम कहां गई ?
ख़ुशी ने हंसकर ग़म से कहा-
मैं तो तेरे पास हूं!
बस मुझको महसूस करो तुम!
साज़ की आवाज बनी
गीत का अंदाज बनीं,
सरगम की सुर बनीं
दिल का दर्द और आह बनीं
पतझड़ की वसंत बनीं
सूखे पर बरसात बनीं
बंजर पर उर्वर बनीं
शब्दों में मैं अटक गई
अखबारों की सूर्खी बनी
न्यूज़ की हेडलाइन्स बनी
मीडिया की चटपटी ख़बर बनी
मैं तो हरदम तेरे पास हूं
दर्द का मुस्कान हूं…….
तू जीवन का अंश है
मैं तो सारा जहान हूं
सखि! मैं तुझसे भिन्न कहां?
एक पहलू के सिक्के हैं
तू सखी मेरी,संगीनी मेरी
हमराह मेरी, हमदर्द मेरी
मैं सदा वहां,तू रहे जहां
मैं तुममे ही सिमटी हूं,
मैं तुझमें अन्यत्र कहां..??
आर्यावर्ती सरोज “आर्या”
लखनऊ “उत्तर प्रदेश”