गांधी जी ने सही कहा था, ‘दुनिया में जो बदलाव लाना चाहते हैं पहले वह खुद में लाइये’
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्मदिन 2 अक्टूबर पर गांधीजी के चित्र या मूर्ति पर कुछ पुष्प अर्पित कर हम उन्हे याद करते हैं। उनकी 150वीं जयंती पर देश-विदेश में सोशल मीडिया पर कई जगह आयोजन होते रहे हैं। उनके गुणों के बखान, उनकी अहिंसा के सिद्धांत की महत्ता और उनके सादगी भरे जीवन पर लेख आलेख निबंध भाषण होते हैं, लेकिन आज गहराई से मनन करना और अपने जीवन में उनके आदर्शों को उतारना ही इस बात की पुष्टि करेगा कि हमने अपने प्यारे बापू को वास्तव में भुलाया नहीं है। गांधीजी राष्ट्रीय चेतना को एक दिशा देने में कैसे कामयाब हुए, आज वर्तमान परिवेश जहां छल कपट दिखावा को ही अंगीकृत कर रहा है, जहां आज भी भारतीय अशिक्षित जनता सही गलत की पहचान करने में असमर्थ है, महात्मा गांधी जी के विचारों की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है।
गांधी जी ने कहा था मौन सबसे सशक्त भाषण है, धीरे-धीरे दुनिया आपको सुनेगी। देश के कर्णधार केवल लंबे चौड़े भाषण, आश्वासन दे देकर जनता को भ्रमित करते हैं, सिर्फ कहते हैं करते कुछ नहीं, यही कारण है कि जनता भी भीड़ का हिस्सा बनकर केवल समय की बर्बादी करती है। गांधी जी ने अपने कर्मों से विश्व में एक मिसाल पेश की, यही कारण है कि 2 अक्टूबर को विश्व अहिंसा दिवस मनाया जाता है। मुझे तो लगता है भारत से ज्यादा विदेशों में उनके आदर्शों को पढ़ने वाले और मानने वाले हैं, यहां हम केवल प्रतीकात्मक आभास लिए हुए हैं। वर्तमान समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा, जिससे मानव, मानव को समझ सके, नहीं तो मानव भी दो पैरों वाला पशु बन जाएगा। भौतिकता की अंधी दौड़ ने मानव को धन उपार्जन तक ही सीमित कर डाला है। पद, नाम और प्रतिष्ठा पाने की होड़ ने मानव को कृत्रिम बना डाला है।
गांधी जी ने कहा था आपको मानवता में विश्वास नहीं खोना चाहिए। मानवता सागर के समान है यदि सागर की कुछ बूंदें गंदी हैं तो पूरा सागर गंदा नहीं हो सकता। आम जन, किसानों, श्रमिकों, भूमिहीन मजदूरों सभी को एक सूत्र में बांधकर अहिंसात्मक तरीके से संघर्ष के लिए प्रेरित करने की असीम ताकत के पीछे उनका निश्छल व्यवहारिक और पारदर्शी जीवन और सेवा भाव था। कोरोना संकट के बाद वैश्विक धरातल पर मानवीय और नैतिक मूल्यों की एक बड़ी मिसाल अभिनेता सोनू सूद ने बेशक प्रस्तुत की, लेकिन क्या और लोग उनका अनुसरण कर पाएंगे। करोड़ों रुपए के दान, करोड़ों के जकात आखिर क्यों नहीं गरीबी दूर कर पाते। आत्मनिर्भरता की परिकल्पना उनके जीवन का प्रमुख दर्शन रहा, उनसे इतर तो हम आगे बढ़ ही नहीं सकते, गांधी जी का चरखा चलाना एक बहुत बड़ा संदेश था ताकि देश की जनता स्वावलंबी बने। सप्ताह में दो बार स्वदेशी खादी के वस्त्रों को धारण कर हम निश्चित ही अपना योगदान दे सकते हैं। उनके सर्वोदय समाज की स्थापना में भी श्रम की महत्ता सहयोग की भावना, त्याग एवं परहित की भावना है। हमारा सौभाग्य कि हमारे बापू का प्रथम छत्तीसगढ़ आगमन धमतरी के कंडेल सत्याग्रह के दौरान 21 दिसंबर 1920 को हुआ। रायपुर के वर्तमान गांधी चौक पर गांधी जी का भाषण भी हुआ और बाद में वह चौक सार्वजनिक गतिविधियों का केंद्र बन गया। दूसरी बार 22 नवंबर 1933 को पुनः उनका आगमन हुआ, जनसैलाब जैसे गांधी जी को देखने के लिए उमड़ पड़ा था, उनका ऐतिहासिक स्वागत किया गया। इस यात्रा में वे दुर्ग, धमतरी, भाटापारा, बिलासपुर आदि स्थानों पर गए, उन्होंने पंडित सुंदरलाल शर्मा को अपना गुरु माना। मोती बाग में खादी और स्वदेशी प्रदर्शनी में भी वे शामिल हुए।
गांधी जी रस्किन की “अन टू दिस लास्ट” से सर्वाधिक प्रभावित रहे, उनके तीनों बंदर का संदेश बुरा मत देखो, बुरा मत कहो, बुरा मत सुनो, जिसकी सर्वाधिक प्रासंगिकता वर्तमान में है, क्योंकि सारा विश्व आर्थिक और मानसिक संकटों के दौर से गुजर रहा है। विपरीत परिस्थितियां ही सत्य को निकट लाती हैं स्व शुद्धिकरण, सत्याग्रह, बुनियादी शिक्षा, व्यावहारिक शिक्षा, आत्मनिर्भरता, शोषण विहीन समाज, स्वस्थ समाज आज इसकी दरकार है, जिसे गांधीजी ने काफी पहले ही कहा था। अस्पृश्यता आत्मा को नष्ट करता है, लेकिन आज भी ऐसे धर्मान्धों की कमी नहीं है जो इसका पालन कर अपनी आत्मा को शुद्ध करने में लगे हुए हैं। अपनी आत्मकथा सत्य के प्रयोग में सत्य अहिंसा और ईश्वर के मर्म को समझने जानने की उन्होंने कोशिश की। धर्मनिरपेक्षता का कितना सटीक उदाहरण दिया था जब उनसे पूछा गया था कि क्या आप हिंदू हो, उन्होंने कहा हां मैं हिंदू हूं, मैं एक ईसाई, मुस्लिम, बौद्ध और यहूदी भी हूं। भारत जैसे विशाल देश में विभिन्न धर्मावलंबी रहते हैं, जहाँ सभी धर्मों का मूल भी सत्य अहिंसा और भाईचारा है। सभी धर्म मानव चेतना को विस्तार देकर व्यवहार के मानक तय करता है, जिससे मानव अपने चरित्र और व्यक्तित्व के साथ न्याय कर सके। उनके आदर्शों को अपनाना ही, जीवन को सहज सरल और शांति मय बनाएगा।
रफ्तार पर अंकुश लग सकता है, यदि गांधीजी की कही बात कि “एक अच्छा इंसान हर सजीव का मित्र होता है” इसे आत्मसात कर लें, और आत्मसात करना ही होगा, क्योंकि प्रकृति ने भी आक्रोश का रुख अख्तियार कर लिया है। गांधी जी ने 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नेतृत्व किया, 1930 में नमक कर के विरोध में दांडी मार्च किया, 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन चलाया। सर्वप्रथम सुभाष चंद्र बोस ने उन्हें राष्ट्रपिता कह कर संबोधित किया। बड़ी शालीनता और कर्मठता के साथ उन्होंने देश और दुनिया के सामने यह उक्ति चरितार्थ की “खुद में वो बदलाव लाएं जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं।”