Saturday, April 20, 2024
धर्म

माँ कुष्मांडा को कैसे करें प्रसन्न आईये जानें ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री जी से

माँ कुष्मांडा को प्रसन्न करने के लिए मालपुए का भोग लगाना अति उत्तम होता है।चन्द्रमा के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए कुष्मांडा देवी की पुजा करे | माँ को भोग लगाने के बाद प्रसाद को किसी ब्राह्मण को दान कर दें और खुद भी खाएं।इससे बुद्धि का विकास होने के साथ-साथ निर्णय क्षमता भी अच्छी हो जाती है। माँ कुष्मांडा को सिलेटी रंग अत्यंत प्रिय है। यदि आप भी माँ को प्रसन्न करने के साथ साथ धन, यश की प्राप्ति और रोगों से मुक्ति चाहते हैं तो सिलेटी रंग के साथ माँ की आराधना करें। माँ दुर्गा के चौथे रूप का नाम है कुष्मांडा। “कु” मतलब थोड़ा “शं” मतलब गरम “अंडा ” मतलब अंडा। यहाँ अंडा का मतलब है ब्रह्मांडीय अंडा। माँ कुष्मांडा का यह स्वरूप खुशियों भरा है। पुराणों के अनुसार माँ कुष्मांडा ब्रह्मांड की निर्माता के रूप में जानी जाती है जो उनके प्रकाश के फैलने से निर्माण होता है। यही वजह है कि वह सूर्य की तरह सभी दस दिशाओं में चमकती रहती हैं। कुछ मान्यताओं अनुसार यह भी कहा जाता है कि ब्रह्माण्ड का निर्माण माँ कुष्मांडा के उदर से हुआ है। उनके आठ हाथ हैं, जिनमें से सात हाथों में सात प्रकार के विभिन्न हथियार उनके हाथ में चमकते रहते हैं, जिनमें कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प,अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। उनके दाहिनी तरफ आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। वह शेर की सवारी करती हैं। मान्‍यता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब कुष्माण्डा देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अपनी मंद-मंद मुस्कान भर से ब्रम्हांड की उत्पत्ति करने के कारण ही इन्हें कुष्माण्डा के नाम से जाना जाता है इसलिए यह सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। मां कुष्‍माण्‍डा की आठ भुजाएं हैं इसलिए उन्हें अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है। देवी कुष्मांडा का निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है जहां निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनकी भक्ति से आयु,यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। आज के दिन साधक का मन ‘अनाहत’ चक्र में अवस्थित होता है।

मां कुष्‍माण्‍डा की उपासना करने के लिए निम्‍न मंत्र की साधना करना चाहिए:

मंत्र:-या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

उपाय जिन लोगो की कुंडली में सूर्य नीच राशि (तुला) में हो राहु से पीड़ित हो अष्टम भाव में हो या अन्य प्रकार पीड़ित हो तो राजनीति में सफलता नहीं मिल पाती या बहुत संघर्ष बना रहता है। शनि पीड़ित या कमजोर होने से ऐसा व्यक्ति चुनावी राजनीति में सफल नहीं हो पाता, कमजोर शनि वाले व्यक्ति की कुंडली में अगर सूर्य बलि हो तो संगठन में रहकर सफलता मिलती है। नवरात्रि को माँ दुर्गा के साथ बजरंग बलि की पूजा विशेष फलदायी है। इस दिन जो भी भक्त हनुमान चालीसा का पाठ करता है या सुंदरकांड का पाठ करता तो उसे शनिदेव जी का भी साथ मिलता हैं। अत: इस बार राजनीति में सफलता का स्वाद चखनेवालों को यह उपाय अवश्य आज़माना चाहिए।

ज्योतिष सेवा केन्द्र
ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री
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