Sunday, June 2, 2024
साहित्य जगत

इस कोरोना काल ने आग……

इस कोरोना काल ने आग दिया बरसाय।
सही सलामत जो बचे भाग्यवान कहलाय।
चारो तरफ अशांति है मानवता अकुलाय।
कोरोना से मुक्ति का दिखता नहीं उपाय।
कोरोना का बढ़ रहा कितना आज प्रवाह।
नहीं किसी के हृदय में है कोई उत्साह।
कोरोना ने ले लिया उसके पति का प्रान।
जीवन की बगिया हुई हरी भरी वीरान।
टुटी चूड़ियां हाथ की ध्वस्त हुआ सिंदूर।
उस बेचारी का हुआ सपना चकनाचूर।
डॉ. वी. के. वर्मा
चिकित्साधिकारी
जिला चिकित्सालय बस्ती
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