Monday, July 1, 2024
साहित्य जगत

कविता(आर्यवर्ती सरोज आर्या)

सांझ ढ़लते ही
जब झुरमुट में
लौट जाते परिंदे
अपनी नीड़ में
सूरज भी छुप जाता
संध्या की आगोश में
सुदूर प्रदेशों से
आगमन होता तब
चांद का…..!
और संग उडुओं का,
रात भर तारे
अपनी मौजूदगी से
गुलज़ार करते
गगनांचल में..,
फिर!
सुबह की भोर
उषा की हिरण्यमयी
अशुकांत से आच्छादित
हो कर देता उजाला
चहुं ओर!
ऐसे ही स्वर्णिम उजाले की
दरकार है….
कोरोना के अंधकार
को भेद कर,
चतुर्दिक छिटक जाने की।

आर्यावर्ती सरोज “आर्या”
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)