Monday, April 29, 2024
साहित्य जगत

ग़ज़ल

दिल ने कहा आंख से, सोचता हूं मैं

देखती हो तुम और, धड़कता हूं मैं ।

मुमकिन तेरे तुफैल से,ये सारे नजारे
जंच जाता तुझे कोई तो मचलता हूं मैं ।

सोचा चलो ये रिश्ता, आंखों से तोड़ लें
देखे बिना जहां को, तड़पता हूं मैं ।

तस्वीर कोई देखी थी, आंखों ने एक बार
नूरानी शक्ल आज वही, ढूढ़ता हूं मैं ।

रुसवाइयों के डर से, कुछ नहीं कहता
कहने से पहले बात बहुत, तौलता हूं मैं ।

दिल टूटना तो आतिश, इक आम बात है
टूटा कहां से कैसे यही, जांचता हूं मैं ।

आतिश सुल्तानपुरी
बस्ती(उत्तर प्रदेश)