Saturday, May 18, 2024
साहित्य जगत

तेरा सहारा

हो चुके ,सूने घर बहुत अब..
अब तो अपने को ,थमने दो…
आखिर ! किसको, किसको मारोगे ?
अब तो खून के आंसू न बहने दो,
देखो आर्यभूमि पर, कैसा संकट छाया है?
हर जगह धूं -धूं जलती चिताऐ है..
तो कहीं होती दफन काया हैं…
लाशें भी,अब तैर रही ,पावन तेरी गंगा में..
बेटा- मां बाप से हो रहा है दूर..
अब तो कुछ ऐसा इंसाफ करो…
सुहाग मिट रहे,सुहागन के…
उनके सिंदूर की कीमत तो समझो!
नए बच्चे बिलबिला रहे हैं..
उनकी माता के क्रंदन को समझो!
जब जब इस धरा पर बला आई है,
तो सबने मिलकर तेरा, है आह्वान किया..
हे त्रिपुरारी,अब अपनी आंखें खोल दो,
जटाओं के बंधन से उन्मुक्त करो खुद को
डम डम डमरू के नाद से, ऐसा उद्घोष करो
अपनी तीव्र चपलता से तांडव का नाच करो,
अपने त्रिशूल से अब ऐसा प्रकाश करो
तुम्हीं हमारे पालक,तुम ही सृष्टि विनाशक हो
हे शिव शम्भू अब तुम ही इसके संहारक हो
कोरोना रुपी राक्षस का अंत तुम्हीं से संभव है
सिस्टम हो गया है ,अब फेल यहां का,
सरकार के हर काम में, अब भी संशय है…।।

राजीव लोचन द्विवेदी (राहुल)