प्राचीन एवं पौराणिक कश्मीर
प्राचीन एवं पौराणिक कश्मीर-
कश्मीर पुर्व में कश्यप सागर (कैस्पियन सागर) नाम से जाना जाता था जो कश्यप ऋृषि के नाम पे ही है।
शोधकर्ताओ का मानना है कि कश्यप सागर से लेकर कश्मीर तक ऋृषि कश्यप और उनके पुत्रो का शासन हुआ करता था । कश्मीर के सम्पूर्ण क्षेत्र पर सबसे पहले जम्बू द्वीप के राजा आग्निध्र का शासनल होना बताते है और बाद में सतयुग में कश्यप ऋृषि का राज हो गया।
त्रेता युग भगवान राम के काल से हजारो वर्ष पूर्व प्रथम मनु स्वायंभुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने इस भारतवर्ष को बसाया था तब कश्मीर एक जनपद था।
हालंाकि पौराणिक मतानुसार कश्यप ऋृषि के नाम पर ही कश्यप सागर (कैस्पियन सागर) और कश्मीर है। कहा जाता है। कि कैलाश पर्वत के आस पास भगवान शिव के गणो की सत्ता थी और उक्त इलाके मे राजा दक्ष का साम्राज्य भी था। कश्मीर कश्यप ऋृषि के सपनो का राज्य बनाया था।
उनकी एक पत्नी कद्रू के गर्भ से नागो की उत्पत्ति हुई जिनमे 8 प्रमुख नाग थे अनंत ( शेषनाग), वासुकि ,तक्षक कर्कोटक , पद्म, महापद्म, शंख और कुलिकध् इन्ही से नागवंश की स्थापना हुई। पूर्व में कश्मीर का अनन्त नाग नागवंशियो की राजधानी थी।
पूर्व मे कश्मीर घाटी बहुत बड़ी झील हुआ करती थी कश्यप ऋृषि ने यहाँ से पानी निकाल दिया और इसे मनोरम प्राकृतिक स्थल बना दिया । इस तरह कश्मीर घाटी अस्तित्व मे आई हालांकि भूगर्भशास्त्रियो के अनुसार खदिया नयार बारामूला मे पहाड़ो के धंसने से झील का पानी बहकर निकल गया और इस तरह कश्मीर रहने लायक स्थान बन गया। 1184 ईषा पुर्व के राजा गोनंद से लेकर राजा विजय सिम्हा (1129ईस्वी) तक के स्थल नागो के नाम पर है(राजत रंगिणी तथा नीलम पुराण)
कश्मीर के प्राचीन स्थल-
कश्मीर में आज भी नागो के नाम पर जगहें है जैसे अनंतनाग,कमरू, कोकरनाग, वेरीनाग,नारानाग कौसर नाग आदि। बारामुला का प्रचीन नाम बाराह मूल था यह प्राचीन काल में बराह अवतार की उपासना का केन्द्र था बाराहमूल का अर्थ होता है सूअर दाढ़ या दाँत बाराह भगवान ने अपने दाँत से ही धरती उठा ली थी। इसी तरह कश्मीर के बड़गाम पुलवामा,कुपवाड़ा, शोपियाँ,गंदरबल,बाॅदीपुरा,श्रीनगर और कुलगाम जिला का अपना अलग पा्रचीन और पौराणिक इतिहास रहा है।
महाभारत काल से भी पुराना है कश्मीर का इतिहास–
हिमालय की गोद मे बसा कश्मीर अपनी सुन्दरता के लिए देश ही नही बल्कि दुनिया भर मे मशहूर है यहाँ हर समय पर्यटको का आना जाना लगा रहता है। कश्मीर में कई पर्यटन केन्द्र है कश्मीर अद्भुत प्राकृतिक सुन्दरता के साथ साथ अपने प्राचीन इतिहास महाभारत काल से भी पुराना है महाभारत के पूर्व से ही कश्मीर भारत के 16 महाजनपदो, मे से तीन गांधर,कम्बोज और कुरू महाजनपदों के अन्तर्गत आते थे।
कश्मीर के हरीपर्वत व शंकराचार्य पर्वत की पौराणिक कथा
यह माना जाता है कि कश्मीर को पूर्व में सती या संतीसर भी कहाँ जाता था। पौराणिक कथाओ के अनुसार भगवती सती यहा सरोवर मे नौका विहार कर रही थी।
इसी बीच यहाँ कश्यप ऋृषि जलोद्भव नामक राक्षस को मारना था। राक्षस को मारने के लिए कश्यप ऋृषि तपस्या करने लगे। देवताओ के आग्रह पर भगवती सती ने सारिका पक्षी का रूप धारण कर अपनी चोंच मे पत्थर रखकर राक्षस को मार दियाध्वह राक्षस मर कर पत्थर हो गया। इसी को आज हरीपर्वत के नाम से जाना जाता है।
यह कहा जाता है कि जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के एक ओर हरी पर्वत तथा दूसरी ओर शंकराचार्य पर्वत है। प्राचीन कथाओ के अनुसार शंकराचार्य ने पर्वत पर एवं भव्य शिवलिंग,मंदिर, मठ,की स्थापना की ।
कश्मीर के कश्मीरी पंडित –
कश्मीर के मूल निवासियों को कश्मीरी पंडित कहते है। कश्मीरी पंडितो की संस्कृति 6000 वर्ष पुरानी है। वे ही कश्मीर के मूल निवासी है। कश्मीर भारत का ही है इसके कुछ भाग पर पाक अनधिकृत रूप से कब्जा कर लिया है जिसे पाक आधिकृत कश्मीर (पी0ओ0के0 )कहते है।
कश्मीर का इतिहास और सभ्यता –
समय के साथ कश्मीर की धार्मिक और सांस्कृतिक सभ्यताओ में परिवर्तन हुआ संश्लेषण हुआ। जिससे यहाँ तीन मुख्य धर्म स्थापित हुएयहाॅ हिेन्दू ,बौध्द और इस्लाम के अलावा सिख धर्म के अनुयायी भी मिलते है। मध्य युग में मुस्लिम आक्रान्ता कश्मीर पर काबिज हो गयें।
सुल्तान सिकन्दर बुतकिशन ने यहाँ के मुल कश्मीरी हिन्दुओ को मुसलमान बनने पर या राज्य छोड़ने पर या मरने पर मजबूर कर दिया । कुछ ही सदियों मे कश्मीर घाटी मे मुस्लिम बहुमत हो गया। कभी अफगानी, कभी कश्मीरी मुसलमान कभी मुगल शासको के हाथ मे कश्मीर रहा मुगल सल्तनत को हरा कर सिख महाराजा राणजीेत सिंह ने अपना राज्य स्थापित किया। कुछ समय बाद डोंगरा राजा गुलाब सिंह डोगरा ने ब्रिटिश लोगो से संधि करके जम्मू के साथ कश्मीर पर अधिकार कर लिया।कश्मीर का इतिहास राजतरंगिणी जो कल्हण द्वारा 12वी सदी में लिखा था तब तक यहाँ पुर्ण हिन्दू राज था यह महान अशोक के साम्राज्य का हिस्सा भी रहा। तभी यहाँ वौध्द धर्म का आगमन हुआ छठी शताब्दी में महाराज बिक्रमादित्य उज्जैन के राजा के काल मे पुनः हिन्दू धर्म की वापसी हुई।
उसके बाद ललितादित्या का शासन रहा जिसका काल 697 ई0 से 738 ई0 तक था।
आइने अकबरी के अनुसार छठी से नौवी शताब्दी के अन्त तक कश्मीर पर इसका शासन रहा इसके बाद उसका उत्तराधिकारी अवंती वर्मन बना। उसने अंवतिपुर को अपनी राजधानी बनाया जो एक समृध्द क्षेत्र रहा। इसके ,खंडहर आज भी शहर की कहानी कहते है। महाभारत युग के गणपतराय और खीर भवानी मंदिर आज भी े है गिलगित मे पाण्डुलिपियाँ है जो प्राचीन पाली भाषा मे है उसमे बौध्द लेख लिखे है। त्रिखा शास्त्र भी यही की देन है चैदहवी शताब्दी मे यहा मुस्लिम शासन प्रारम्भ हुआ ।इसी काल मे फारस से सूफी इस्लाम का भी आगमन हुआ यहा पर ऋृषि परम्परा लिखा शास्त्र और सूफी इस्लाम का संगम मिलता है। जो कश्मीरीयत का सार है। भारतीय लोकाचार की सांस्कृतिक प्रशारवा कटट्रवादिता नही है।
प्रचीन काल कश्मीर मे राज करने वाली राज वंशावली –
1ण् प्रवर सेन 2 गोपतृ 3 मेघवाहन 4 प्रवरसेन-2 विक्रमादित्य, 6 चन्द्रा पीड 7 तारापीड 8 ललितादित्य 9 जय पीड य10द्ध अवंतिवर्मन (855 -883) 11 शंकर वर्मन राजा (883 – 902) 12 गोपाल वर्मन (902 – 904) 13 सुगन्धा (904 -906) 14 पार्थराजा (906 -921़ 931 -935) 15 चक्रवर्मन (932 -933 935-937) 16 यशस्कर (939 -948) 17 संग्रामदेव (948 – 949) 18 पर्वगुप्त (949 -950) 19 क्षेमगुप्त (950 958) 20 अमिमन्युु राजा (958 972) 21 नन्दि गुप्त (972 973) 22 त्रिभुवन (973 975) 23 भीमगुप्त ( 975 980) 24 दिदद्ा (980 1003) 25 संग्राम राज (1003 1028) 26 अनन्त राजा (1028 1063) 27 उत्कर्ष 1089 28 हर्षदेव (1089 1101) 29 उत्पल 30 सल्हण 31 सुस्सल 32 मिक्षाचर 33 जयसिंह 34 जयसिंह 35 राजदेव (1305 1324) 36 कोटरानी (1324 1339)
मध्यकाल – जैनुल आब्दीन (1420-1470)
1589 में यहाँ मुगल का राज हुआ यह अकबर का शासन काल था मुगल राज्य के विखण्डन के बाद यहाँ पठानो का कब्जा हॅुआ। यह काल यहाँ का काला युग कहलाता है। फिर 1814 मे पंजाब के शासक महाराजा रणजीत सिंह द्वारा पठानो की पराजय हुई व सिख साम्राज्य की स्थापना हुई।
आधुनिक काल – 1846 मे अंग्रेजो द्वारा सिखो की पराजय हुई जिसका परिणाम था लाहौर सन्धि। अंग्रेजो द्वारा महाराजा गुलाब सिंह को गदद्ी दी गई जो कश्मीर का स्वतंत्र शासक बना । बाद में 1925 ई0 में महाराजा गुलाब सिंह के सबसे बड़े पौत्र महाराजा हरिसिंह गद्दी पर बैठे जो 1947 तक कश्मीर के शासक रहे ।
अधिमिलन कश्मीर-
ब्रिटिश इन्डिया के विभाजन के समय 565 अर्धस्वतंत्र शाही राज्य अंग्रेजी साम्राज्य द्वारा संप्रभुता के सिध्दान्त के अन्तर्गत 1858 मे संरक्षित किये गये भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947 द्वारा इन राज्यो की सम्प्रभुता की समाप्ति की घोषणा की गई। राज्यो के सभी अधिकार वापस लिये गये। व भारतीय संघ मे प्रवेश करने हेतु प्रवेश पत्र पर हस्ताक्षर कराये गये।
इस योजना में राजा हरिसिंह ने भारत और पाकिस्तान से तटस्थ नीति का समझौता किया । भारत के साथ सामझौता पर हस्ताक्षर से पहले पाकिस्तान ने कश्मीर की आवश्यक आपूर्ति काट दिया जो तटस्थता नीति का उलंघन था।
उसने पाकिस्तान मे अधिमिलन हेतु दबाव डालना शुरू कर दिया जो कश्मीर और भारत दोनो केा स्वीकार नही था।
पकिस्तान ने पठान जातियो को कश्मीर पर आक्रमण के लिये उकसाया, भड़काया और समर्थन दिया। तब राजा हरिसिंह ने भारत से मद्द का आग्रह किया यह 24 अक्टूबर 1947 की बात है। नेशनल कांफ्ररेन्स के अध्यक्ष शेख अब्दुल्ला ने भी भारत से मद्द एंव रक्षा की अपील की। राजा हरिसिंह ने भी अन्तिम लार्ड माउण्ट वेतन को पत्र लिखकर भारत में अधि मिलन की इच्छा प्रकट की इस इच्छा को लार्ड माउण्टवेतन ने 27 अक्टुबर 1947 को स्वीकार किया।उस समय पकिस्तान द्वारा कोई प्रश्न नही किया। कश्मीर का भारत में विलय विधि सम्मत माना गया।
उसके बाद पठान हमलावरो को खदेड़ने के लिए 27 अक्टुबर 1947 को भारत ने सेना भेजी व कश्मीर को भारत मे अधिमिलन कर भारत का अभिन्न अंग बना दिया।
संयुक्त राष्ट्र की भूमिकाा –
भारत 1 जनवरी 1948 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद मे ले गया । परिषद ने भारत और पकिस्तान से सुधार के लिए उपाय खोजने कि सलाह दी तब तक किसी वस्तु परिवर्तन के बारे मे सुचित करने को कहां यह बात 17 जनवरी 1948 की है। कश्मीर में 5 मार्च को 1848 को शेख अब्दुला के नेतूत्व मे अंतरिम सरकार का गठन हुआ।
संयुक्त राष्ट्र के तरवाधान मे युध्द विराम की घोषणा की गई। यू0 एन 0 आई0 पी0 संकल्प 5 जनवरी 1949 भारत की संविधान सभाद्वारा नवम्बर 1956 को अंगीकृत किया गया और 26 जनवरी 1957 को प्रभाव मे आया।
राज्य मे पहला आम चुनाव मार्च 1957 मे हुआ और शेख अब्दुल्ला की पहली सरकार बनी । राज्य मे दुसरा विधान सभा चुनाव 1960 मे हुआ जिसमे शेख अब्दुल्ला की सरकार पुनरू चुनी गई। कश्मीर मुद्दे को लेकर अगस्त 1965 मे भारत पकिस्तान युध्द हुआ जिसमे भारतीय सेना ने आक्रमण का मुहतोड़ जवाब दिया।
इस युध्द का अन्त 10 जनवरी 1966 को भारत पकिस्तान के बीच ताशकंद समझौता हुआ। जिसमे हमे लालबहादुर शास्त्री को खो देना पड़ा।
कश्मीर मे आतंकवाद का आरम्भ –
1989 मे कश्मीर मे आतंकवाद का प्रारम्भ हो गया। और कश्मीरी पंडितो को कश्मीर से जबरन निष्कासन किया जाने लगा –
कश्मीरी पंडित कश्मीर घाटी में एक अल्पसंख्यक हिन्दु समुदाय है 1990 मे इनको बहुत सारी धमकियाँ आनी शरू हो गई बड़े कश्मीरी पंडितो केो गोली मार दी गई दिन दहाड़े इन्हे धमकियाँ मिलने लगी । यदि इन्होने घाटी नही छोड़ा तो जान से मार दिया जायेगा।
लगभग 200 से 300 कश्मीरी पंडितो को 2 से 3 माह मे मार दिया गया इसके बाद मे धमकिया अकबारा मे छपने लगी कि कश्मीरी पंडित कश्मीर छोड़ दे साथ ही रात दिन लाउडस्पीकर पे भी घोषणा करके उन्हे डराया जाने लगा । अतंरू अपनी जान बचाने के लिए घाटी छोड़ कर जम्मू या दिल्ली के लिए रवाना होना पड़ा उस समय कश्मीर के गवर्नर जगमोहन थे इसके विरोध मे तत्कालीन मुख्य मंत्री फारूख अब्दुल्ला ने स्तीफा दे दिया कश्मीर मे पुरी तरह अव्यवस्था और अराजकता फैल गई। कश्मीरी पंडितो की समस्या ज्यो कि त्यो बनी है।
कश्मीर और धारा 370 – कश्मीर मे राष्ट्रपति शासन लगाकर कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करने वाली धारा 370 को 5 अगस्त 2019 को समाप्त कर दिया गया और कश्मीर को जम्मू कश्मीर लदृाख दो केन्द्र शासित प्रदेश बनाए गये परन्तु कश्मीर में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है ।
धरती का स्वर्ग जम्मू- कश्मीर क्यो है ?
जम्मू– अपनी खूबसूरती के लिए जम्मू कश्मीर को पृथ्वी का स्वर्ग कहा जाता हैै ‘‘ जम्मू से 45 किमी0 दूर स्थिति मानसर झील जंगलो से घिरी हुई है यह एक प्रमुख पर्यटन का आदर्श स्थान है । कश्मीर का प्रवेश द्वारा माना जाने वाला जम्मू शहर तवी नदी के तट पर वसा है । यह समुद्रतल से 305 मीटर की ऊॅचाई पर बसे इस शहर का क्षेत्रफल 20.36 वर्ग किलोमीटर है । 18 वीं शताब्दी के मध्य से यहां डोगरा राजाओ का राज थ इस लिए यहां डोंगर संस्कृति की छाप साफ दिखाई देती है । यह शहर मन्दिरो का शहर कहा जाता है ।
मानसर झील– यह झील जंगलो से घिरी है झील में नौकायन की जाती है यह जम्मू से 45 किलो मीटर दूरी पर ज्ञिथति है । सुरिनसर झील- यह झील जम्मू से 42 किलोमीटर दूर है
शिवखोड़ी– जम्मू से लगभग 65 किलोमीटर दूर शिवखोड़ी की गुफा कुदरत का एक अजूबा जान पड़ती है गुफा 150 मी0 लम्बी है इसका दहिना हिस्सा बहुत संकरा है दूर से इस संकरे रास्ते को देखने पर लगता है कि इसके अन्दर जाना असभंव है लेकिन गुफा के अन्दर जाते ही एक चैड़ा मैदान दिखाई देने लगता है जिसमें सैकड़ो लोग खड़े हो सकते है ।
अखनूरः– अखनूर जम्मू से 32 किलोमीटर दूर स्थित एक सुन्दर पिकनिक स्थल है यही पर चिनाब नदी पहाड़ो से बलखाती हुई मैदान में उतरती है।
अमर पैलेस संग्रहालय – अतीत का षाही महल आज अमर पैलेस संग्रहालय के नाम से जाना जाता है यह तवी नदी के किनारे बने इस महल की विशेषता इस की बेहतरीन वास्तुशिल्प है जिसकी डिजाइन एक फ्रेंच वास्तुकार ने तैयार किया था
झज्जर कोटली– यह भी एक पिकनिक स्पाट है यहां कलबुल करता एक झरना है जिसका स्वच्छ पानी प्र्यटको की थकान दूर करता है ।
पटनी टाप – जम्मू श्रीनगर राश्ट्रीय राज्य मार्ग जम्मू से 112 किमी0 दूर स्थित है देवदार के घने जंगल और हरीघास सुन्दर ढलान यहां आने वाले पर्यटको का मन मोह लेने के लिए काफी है । यह एक खुबसूरत झील है ।
श्रीनगर– झेलम नदी के किनारे वसा श्री नगर जम्मू कश्मीर प्रदेश का एक खूबसूरत शहर है यहां पहाड़ो की चूमती झीलो का प्राकृतिक सौन्दर्य और खुला नीला असमान जी हां धरती का स्वर्ग श्रीनगर की विशेषताएं है जहाॅगीर ने इस खूबसूरती से प्रभावित होकर ही से धरती के स्वर्ग से नवाजा था । यह शहर हैन्डी क्राफट व सूखे मेवे के लिए प्रसिद्ध है । यह समुद्र तल से 1730 मीटर ऊॅचाई पर स्थित है । श्रीनगर में डल झील मुगल गार्डेन हजरतबल दरगाह गुलमर्ग,पहलगाम,सोनमेर्ग आदि यहां के प्रमुख आकर्षण है ।
कश्मीर के प्रमुख पर्यटन स्थल
डल झील – डल झील अपनी खूबसूरती के लिए दुनियां भर में मशहूर है यह झील चारो तरफ से पर्वत की चोटियों से घिरी है इसकी लम्बाई 6 किलोमीटर और चैड़ाई 3 किलोमीटर और चैड़ाई 3 किलोमीटर है झील के किनारे हरे भरे बगीचे अपनी रौनक विखरते है झील में तैरते हुए सिकरे सैलानियों का सैर करवाते है । झील में घर के आकार हाउसबोट सैर को अलग अहसास करवाते है इन घरो से निकलने वाली रोशनी झील के पानी को ज्यादा मन मोहक बना देती है ।
वलूर झील– स्वच्छ पानी की सबसे बड़ी वूलर झील श्रीनगर से 32 किमी0 उत्तर पूर्व में स्थित है । यह झील भी ऊॅचे -ऊॅचे
पहाड़ो से घिरी है झिालों में बहता कल-कल करता पानी अपनी कहानी खुद वयां करता है ।
मुगलकालीन बगीचे– मुगलकाल में वादशाहों को यह शहर अतिप्रिय था श्रीनगर के कुछ प्रमुख बागीचों में निशानबांग सालिमारबांग, चस्में शाही बाग काफी मसहुर है इन बांगो में लगे वृक्षों पर लगने वाले फूलो कि खूबसूरती बया करना काफी मुसकिल है ।
गुलमर्ग – यह श्रीनगर से 52 किमी0 दूर स्थित है गुलमर्ग का पूरा रास्ता देवदार के वृक्षो से ढका है गर्मीयों में यह विदेशी सैलानीयों की आकर्षण का केन्द्र है यह समुद्र तल से 2700 मी ऊचाई पर स्थित है नवम्बर से अप्रैल तक सफेद चादर फैली रहती है गुलमर्ग में रोपवे आकर्षण का केन्द्र है ।
पहलगाम– श्रीनगर से 96 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पहलगाम अनंतनाग जिले में आता है । यह 2130 मीटर की ऊचाई पर होने की वजह से पहलगाम में केशर की पैदावर एशिया में सब से ज्यादा होती है ।
लदृदाख– जम्मू कश्मीर को स्वर्ग बनाने में नद्दाख का बड़ा योगदान है । लद्दाख इंडास नदी के किनारे बसी एक खूबसूरत जगह है । लद्दाख को मून लैण्ड के नाम से भी जाना जाता है ।
सही मायने में जम्मू कश्मीर नेचुरल-ब्यूटी के कारण ही पृथ्वी का स्वर्ग है ।
डॉ त्रिभुवन प्रसाद मिश्र
सिविल लाइन राणा प्रताप चौक,
बस्ती(उत्तर प्रदेश)